टोहाना, 11सितम्बर,(विजय रंगा), टोहाना हल्के में जब से भाजपा प्रत्याशी बबली अपने लिए टोहाना हल्के से भाजपा की टिकट लेकर आएं हैं तभी से बराला को यह सब शाय़द राश नहीं आ रहा।
अभी बबली के नामांकन वाले दिन से सुभाष बराला की नाराज़गी का आभास हल्के की जनता को होना शुरू हो गया था।
बबली ने भी सुभाष बराला के फार्म हाउस पर जाकर उनको मनाने की भरसक कोशिश भी की परंतु बबली अपनी कौशिश में हाल-फिलहाल तक बराला को खुले तौर मनाने में कामयाब नहीं हुए हैं
जिस कारण बबली को तो अपने चुनाव प्रचार अभियान में मुश्किलें तो आ ही रही है उधर नए भाजपाई( बबली ग्रुप)कार्यकर्ताओं को कोई पूछ ही नहीं रहा है
तथा पुराने भाजपा कार्यकर्ता (बराला ग्रुप) अपने आका के अगले इंतजार तक का इंतजार कर रहे हैं फिलहाल आका ने इधर उधर रहने का ही आदेश दिया लगता है।
भाजपा के स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में बराला की अच्छी राजनैतिक पकड़ है तथा उनके आदेश के बिना एक पता भी नहीं हिल सकता ऐसे में बबली करें तो क्या करें।
बबली भाजपा की टिकट ले तो आए परन्तु टिकट के साथ की तरह की समस्याएं भी अपने साथ ले आए जिनका उनके पास कोई।
समाधान नहीं है,और चुनाव प्रचार के अन्त तक अगर बराला की नाराज़गी इसी तरह रही तो बबली के राजनैतिक समीकरण बुरी तरह प्रभावित होंगे
और इस बात का दोनों के राजनैतिक कैरियर पर कितना असर पड़ेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है परंतु यह तय लगता है कि अगर समय रहते
इस बबली -बराला प्रकरण का स्थाई समाधान नहीं निकला तो टोहाना हल्के में भाजपा काफी प्रभावित हो सकती है। बबली अब अगर बराला को समय रहते किसी तरह भी मनाने में कामयाब हो जाते हैं तो बबली कांग्रेस के साथ मुकाबला की स्थिति में आ सकते हैं
इस सब के बाबजूद अगर बबली की अगर हार हुई तो इसका सीधा आरोप बराला ग्रुप पर भीतरघात का जाएगा। इसलिए भाजपा के लिए दोनों तरफ मुश्किल दिखाई दे रही है
कि बबली व बराला का मन-मुटाव दिल से खत्म कैसे किया जाए। बराला के एक समर्थक का कहना है कि बबली अगर टिकट लाने से पहले बराला की सहमति दे लेते तो आज यह नौबत नहीं आती ।
बराला समर्थकों का मानना है कि आज बबली के सम्मुख जो यह समस्या आई हुई है इस सब के लिए बबली ही जिम्मेदार है इसमें सुभाष बराला का कोई दोष नहीं है उनकी नाराज़गी स्वाभाविक व जायज़ है।